फुरसत में करेंगें तुझसे हिसाब ये जिंदगी |
अभी उलझे हैं हम खुद को ही सुलझाने में
ठिकाना कब्र है तेरा, इबादत कुछ तो कर ग़ाफिल,
कहावत है कि खाली हाथ घर जाया नहीं करते...
बहुत देर से आया तू मेरी जिंदगी में मेरे खुदा
अब न इबादत का वक्त रहा ना नमाज का.
फ़लसफ़ा जिंदगी का कुछ काम न आया
हर मोड़ पे एक और नया मोड़ मिलता गया.
क्यों कामयाबियों का करूं ज़िक्र फख्र से,
नाकामियों ने भी सिखाई है जिंदगी.
हमसे मिलकर वो क्या गज़ब ढाने लगे..
ईश्वर को छोड़ हमारी कसम खाने लगे.
मैं चुप रहा तो और गलत फहमियां बढीं,
वो भी सुना है उसने जो मैनें कहा नहीं.
अपने लहजे पर गौर कर के बता
लफ्ज कितने है , तीर कितने है ??
यूं न पढ़िए कहीं कहीं से हमें
हम भी इंसान हैं, किताब नही.
बड़ी गुस्ताख है तुम्हारी याद, इसे तमीज सिखा दो
दस्तक भी नहीं देती, और दिल में उतर जाती है ..
"वास्ता नही रखना.. तो फिर.. मुझपे नजर क्यूं रखता है...
मैं किस हाल में जिंदा हूँ.. तू ये सब खबर क्यूं रखता है ;
हमने देखा था फकत शौक-ऐ-नजर की खातिर
ये न सोचा था के तुम दिल मैं उतर जाओगे
धर्म को बाँटने वाले इंसान बता तेरी रज़ा क्या है?
तूने ईश्वर को भी ना छोड़ा, बता तेरी सज़ा क्या है?
मेरी कारनामा -ए- जिन्दगी, मेरी हसरतों के सिवाए कुछ नहीं,
ये किआ नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वो रहा नहीं..
खुदा बख्शे हमें उनसे.. कि उनकी दिल्लगी ऐसी..
शहर की नींद उड़ जाए तो उनको नींद आती है..!!!
ला तेरे पैरोँ मेँ मरहम लगा दूँ........।
मेरे दिल को ठोकर मारने से तुझे चोट तो आई होगी
यूँ तो मुस्कुराकर ही
घायल करने का रखते हैं हुनर वो
खुदा जाने उनके इरादे
हमें देखकर क्यूँ खिलखिला दिए..
वफ़ा करते रहे हम इबादत की तरह !
फिर इबादत खुद एक गुनाह हो गई !!
कितना सुहाना था सफर जब साथ थे तुम !
फिर क्या हुवा की मंजिल जुदा हो गई !
बहुत एहसान है तेरी उन नफरतों का मुझ पर... ऐ ज़ालिम,
तुझसे मिली ठोकर ने मुझे संभलना सिखा दिया.....!!
अभी उलझे हैं हम खुद को ही सुलझाने में
ठिकाना कब्र है तेरा, इबादत कुछ तो कर ग़ाफिल,
कहावत है कि खाली हाथ घर जाया नहीं करते...
बहुत देर से आया तू मेरी जिंदगी में मेरे खुदा
अब न इबादत का वक्त रहा ना नमाज का.
फ़लसफ़ा जिंदगी का कुछ काम न आया
हर मोड़ पे एक और नया मोड़ मिलता गया.
क्यों कामयाबियों का करूं ज़िक्र फख्र से,
नाकामियों ने भी सिखाई है जिंदगी.
हमसे मिलकर वो क्या गज़ब ढाने लगे..
ईश्वर को छोड़ हमारी कसम खाने लगे.
मैं चुप रहा तो और गलत फहमियां बढीं,
वो भी सुना है उसने जो मैनें कहा नहीं.
अपने लहजे पर गौर कर के बता
लफ्ज कितने है , तीर कितने है ??
यूं न पढ़िए कहीं कहीं से हमें
हम भी इंसान हैं, किताब नही.
बड़ी गुस्ताख है तुम्हारी याद, इसे तमीज सिखा दो
दस्तक भी नहीं देती, और दिल में उतर जाती है ..
"वास्ता नही रखना.. तो फिर.. मुझपे नजर क्यूं रखता है...
मैं किस हाल में जिंदा हूँ.. तू ये सब खबर क्यूं रखता है ;
हमने देखा था फकत शौक-ऐ-नजर की खातिर
ये न सोचा था के तुम दिल मैं उतर जाओगे
धर्म को बाँटने वाले इंसान बता तेरी रज़ा क्या है?
तूने ईश्वर को भी ना छोड़ा, बता तेरी सज़ा क्या है?
मेरी कारनामा -ए- जिन्दगी, मेरी हसरतों के सिवाए कुछ नहीं,
ये किआ नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वो रहा नहीं..
खुदा बख्शे हमें उनसे.. कि उनकी दिल्लगी ऐसी..
शहर की नींद उड़ जाए तो उनको नींद आती है..!!!
ला तेरे पैरोँ मेँ मरहम लगा दूँ........।
मेरे दिल को ठोकर मारने से तुझे चोट तो आई होगी
यूँ तो मुस्कुराकर ही
घायल करने का रखते हैं हुनर वो
खुदा जाने उनके इरादे
हमें देखकर क्यूँ खिलखिला दिए..
वफ़ा करते रहे हम इबादत की तरह !
फिर इबादत खुद एक गुनाह हो गई !!
कितना सुहाना था सफर जब साथ थे तुम !
फिर क्या हुवा की मंजिल जुदा हो गई !
बहुत एहसान है तेरी उन नफरतों का मुझ पर... ऐ ज़ालिम,
तुझसे मिली ठोकर ने मुझे संभलना सिखा दिया.....!!
Wah kya baat hai
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