नेक कोशिशो के बाद
बेअसर हुआ था
फिरका परस्ती का ज़हर
सियासी हुक्मरानों ने क्या खोली जुबान
फिर से जलने लगा है शहर
इसकी आंच में
खुदगर्जी की
रोटियाँ सिक रही है
इंसानियत मेरे मुल्क में
कौड़ियो के मोल बिक रही है ....
बेअसर हुआ था
फिरका परस्ती का ज़हर
सियासी हुक्मरानों ने क्या खोली जुबान
फिर से जलने लगा है शहर
इसकी आंच में
खुदगर्जी की
रोटियाँ सिक रही है
इंसानियत मेरे मुल्क में
कौड़ियो के मोल बिक रही है ....
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