Tuesday, 21 May 2013

नेक कोशिशो के बाद

नेक कोशिशो  के बाद
बेअसर  हुआ था
फिरका परस्ती का ज़हर
सियासी हुक्मरानों ने क्या  खोली जुबान
फिर से जलने लगा है शहर

इसकी  आंच में
खुदगर्जी की
रोटियाँ  सिक रही है
इंसानियत मेरे मुल्क में
कौड़ियो के मोल  बिक रही है ....



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