Thursday 9 May 2013

आवत ही हर्षे नहीं...

आवत ही हर्षे नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह।। - तुलसीदास

(जहां आपके आने से खुशी नहीं होती हो और जहां आंखों में प्रेम नहीं दिखता हो, वहां नहीं जाना चाहिए, भले ही सोने की वर्षा हो रही हो।)

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