Friday 10 May 2013

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों -गोपालदास नीरज

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुई आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है

माला बिखर गई तो क्या है, ख़ुद ही हल हो गई समस्या
आँसू ग़र नीलाम हुए तो, समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फ़टी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आंगन नहीं मरा करता है

लाखों बार गगरियाँ फूटीं, शिक़न नहीं आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों
लाख करे पतझड़ क़ोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है

लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गंध फूल की
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर, खिड़की बंद न हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है
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गोपालदास नीरज

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