Saturday, 20 July 2013

जब व्यवस्थायें  पुरानी हो जाये
सरकार बेमानी हो जाये
जब न्याय नहीं धिक्कार मिले
शोषित संपूर्ण  समाज दिखे

क्रांति हो क्रांति हो...

जब शब्द सुने न जाते हो
सेवक बन जाते शासक हो
जब अपना हित देशहित पे भारी हो
भ्रष्टाचार की महामारी  हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब शिक्षा अंको का खेल लगे
पैसे की ही रेलम पेल लगे
जब डिग्री रोटी न देती हो
योग्यता दम तोड़ देती हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब अस्पताल खुद बीमार पड़े
इनमे मौतों का अम्बार लगे
जब चिकित्सक के पास साधन न हो
देने को सिर्फ कोरे आश्वासन हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब रक्षक भक्षक बन बैठा हो'
वर्दी  पर हावी  नेता हो
जब जनता की सुध कोई न लेता हो
जुगाड़ ही  सब कुछ देता  हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब न्याय प्रक्रिया धीमी हो
अन्याय की ही गहमागहमी हो
जब मुक़दमा कील सा चुभता हो
तारीख दर तारीख खिचता हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब चुनाव पैसे-ताकत का संयोजन हो
पद पाना ही एकमात्र प्रयोजन हो
जब राजनीति स्वार्थ-सिद्धि  लगे
परिवार की ही  बेल फूले फले

क्रांति हो क्रांति हो...

जब धर्म -अधर्म में भेद न हो
कुकृत्यो पे किसी को  खेद न हो
जब लहू स्वेत सा लगता  हो
पहली प्राथमिकता पैसा हो

क्रांति हो क्रांति हो...

जब देश की गिरती साख लगे
पडोसी रोज गुस्ताख करे
जब सियासत अपनी लाचार दिखे
सेना का मनोबल तार-तार करे

 क्रांति हो क्रांति हो...

जब अर्थव्यवस्था मजाक लगे
रूपया रोज गर्त में गिरे
जब महंगाई कमरतोड़ बढे
हर तरफ हाहाकार मचे

क्रांति हो क्रांति हो ...

जब निर्धन के घर अँधियारा रहे
मुह से छिनता निवाला रहे
जब गरीबी एक अभिशाप लगे
पूर्व जन्म का किया कोई पाप लगे

क्रांति हो क्रांति हो...

जब जीवन सुरक्षित न लगता हो
हर चौक पे बम फटता हो
जब मौत सिर पर नाचती हो
और हुकूमत जिम्मेदारी से भागती हो

क्रांति हो क्रांति हो.












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