" पाखाना शायरी "पर आई आलोचनाओ पर ...
मानता हूँ बॉस ...गुस्ताखी माफ़ ...हमेशा मूड एक सा नहीं रहता ...मगर पतित होकर उठने का आनंद ही कुछ और है ...अपना दायरा बड़ा सा लगने लगता है ...
मानता हूँ बॉस ...गुस्ताखी माफ़ ...हमेशा मूड एक सा नहीं रहता ...मगर पतित होकर उठने का आनंद ही कुछ और है ...अपना दायरा बड़ा सा लगने लगता है ...
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