ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तेरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई-बहादुर शाह जफ़र
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ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तेरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई
हम को अपनी तीरा-रोज़ी की हक़ीक़त खुल गई.
क्या तमाशा है रग-ए-लैला में डूबा नीश्तर
फ़स्द-ए-मजनूँ बाइस-ए-जोश-ए-मोहब्बत खुल गई.
दिल का सौदा इक निगह पर है तेरी ठहरा हुआ
नर्ख़ तू क्या पूछता है अब तो क़ीमत खुल गई.
आईने को नाज़ था क्या अपने रू-ए-साफ़ पर
आँख ही पर देखते ही तेरी सूरत खुल गई.
थी असीरान-ए-क़फ़स को आरज़ू परवाज़ की
खुल गई खिड़की क़फ़स की क्या के क़िस्मत खुल गई.
तेरे आरिज़ पर हुआ आख़िर ग़ुबार-ए-ख़त नुमूद
खुल गई आईना-रू दिल की कुदूरत खुल गई.
बे-तकल्लुफ़ आए तुम खोले हुए बंद-ए-क़बा
अब गिरह दिल की हमारे फ़िल-हक़ीक़त खुल गई.
बाँधी ज़ाहिद ने तवक्कुल पर कमर सौ बार चुस्त
लेकिन आख़िर बाइस-ए-सुस्ती-ए-हिम्मत खुल गई.
खुलते खुलते रुक गए वो उन को तू ने ऐ 'ज़फ़र'
सच कहो किस आँख से देखा के चाहत खुल गई.
मेहर= सहानुभूति , तलअत =चेहरा, तीरा=अंधकार
नीश्तर=निश्तर =चीरफाड़ का औजार या आला
फस्द =नस को छेदकर शरीर का दूषित खून निकलने की प्रक्रिया, बाइस =कारण
नर्ख =कीमत ,असीरान-ए-क़फ़स=कैदखाने के पुराने कैदी , कफ़स =पिंजरा , आरिज= गाल ,नुमूद =प्रकटीकरण,
कबा=लम्बा ढीला पहनावा , गिरह=गांठ ,जाहिद =जितेन्द्रिय , तवक्कुल =ईश्वर पर भरोसा रखना
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ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तेरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई
हम को अपनी तीरा-रोज़ी की हक़ीक़त खुल गई.
क्या तमाशा है रग-ए-लैला में डूबा नीश्तर
फ़स्द-ए-मजनूँ बाइस-ए-जोश-ए-मोहब्बत खुल गई.
दिल का सौदा इक निगह पर है तेरी ठहरा हुआ
नर्ख़ तू क्या पूछता है अब तो क़ीमत खुल गई.
आईने को नाज़ था क्या अपने रू-ए-साफ़ पर
आँख ही पर देखते ही तेरी सूरत खुल गई.
थी असीरान-ए-क़फ़स को आरज़ू परवाज़ की
खुल गई खिड़की क़फ़स की क्या के क़िस्मत खुल गई.
तेरे आरिज़ पर हुआ आख़िर ग़ुबार-ए-ख़त नुमूद
खुल गई आईना-रू दिल की कुदूरत खुल गई.
बे-तकल्लुफ़ आए तुम खोले हुए बंद-ए-क़बा
अब गिरह दिल की हमारे फ़िल-हक़ीक़त खुल गई.
बाँधी ज़ाहिद ने तवक्कुल पर कमर सौ बार चुस्त
लेकिन आख़िर बाइस-ए-सुस्ती-ए-हिम्मत खुल गई.
खुलते खुलते रुक गए वो उन को तू ने ऐ 'ज़फ़र'
सच कहो किस आँख से देखा के चाहत खुल गई.
मेहर= सहानुभूति , तलअत =चेहरा, तीरा=अंधकार
नीश्तर=निश्तर =चीरफाड़ का औजार या आला
फस्द =नस को छेदकर शरीर का दूषित खून निकलने की प्रक्रिया, बाइस =कारण
नर्ख =कीमत ,असीरान-ए-क़फ़स=कैदखाने के पुराने कैदी , कफ़स =पिंजरा , आरिज= गाल ,नुमूद =प्रकटीकरण,
कबा=लम्बा ढीला पहनावा , गिरह=गांठ ,जाहिद =जितेन्द्रिय , तवक्कुल =ईश्वर पर भरोसा रखना
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