एक दफे रेलवे स्टेशन
पे पढ़ा था
साफ सुस्पष्ट अक्षरों में
लिखा था
आपकी फैलाई गन्दगी
जिसे आप छूना भी
पसंद नहीं करते
छी कह बिदकते
नाक पे कपडा रख
इधर-उधर सटकते
आप जैसे ही इंसान
मेहनत से उसे साफ़ कर
अपनी जीविका के लिए
संघर्ष करते
कर्मठशील हो
अपने परिवार का पेट भरते
और आप खुद को
बहुत बड़ा सभ्य समझते
उन के कार्य को तुच्छ जान
बार-बार फिर से
वही गलती करते ....
जरा सा भी नहीं हिचकते
प्रतीत हो रहा इस धरा पे
मनुष्य वेश में
अनगिनत पशु विचरते ....
पे पढ़ा था
साफ सुस्पष्ट अक्षरों में
लिखा था
आपकी फैलाई गन्दगी
जिसे आप छूना भी
पसंद नहीं करते
छी कह बिदकते
नाक पे कपडा रख
इधर-उधर सटकते
आप जैसे ही इंसान
मेहनत से उसे साफ़ कर
अपनी जीविका के लिए
संघर्ष करते
कर्मठशील हो
अपने परिवार का पेट भरते
और आप खुद को
बहुत बड़ा सभ्य समझते
उन के कार्य को तुच्छ जान
बार-बार फिर से
वही गलती करते ....
जरा सा भी नहीं हिचकते
प्रतीत हो रहा इस धरा पे
मनुष्य वेश में
अनगिनत पशु विचरते ....
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