केवल सिर पड़ी आपदा के समय
सैनिक तुम्हे देवदूत नज़र आते...
वे तो सदैव से ही
सीमा पर बन प्रहरी
दिन रात बिताते
घाम, बर्फ, बरखा
मट्टी और रेता खाते
प्रतिकूल मौसम अडिग रहते
अपनी हड्डियाँ गलाते
शत्रु का भी हर वार
सहर्ष सीने पे झेलते
जरा भी नहीं हिचकिचाते
तुम अपने घर
निश्चिंत निंद्रा में लीन
मित्रो -नातेदारो के संग
तीज-त्योहारों में तल्लीन
कितना हर्षाते....
पर अपने बेफिक्र उल्लास के
मूल को कहाँ समझ पाते
उनके त्याग-पुरुषार्थ
तब क्यों नज़र नहीं आते ???
इस जगत में लोग
प्रत्यक्ष को ही पूजने जाते
पर्दे के पीछे होते श्रम
कभी न सम्मान पाते ....
No comments:
Post a Comment