Friday, 14 June 2013


आज  प्रिय  मित्र  ने  फोन  पर  बशीर  बद्र  साहब  का  एक  शेर  सुनाया 

कोई हाथ भी नहीं मिलायेगा अगर तुम गले मिलोगे तपाक से, 
ये नए मिजाज़ का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो....!!!

तुम्हारे  शेर के जवाब  में  बद्र साहब से  माफी चाहते हुए  अर्ज  करता हूँ 

हम तो फिर भी गले लगायेंगे , हाथ न मिलने का  कोई रंज नहीं 
मिजाज़  शहर का  बदल  जायेगा ,हम जैसे  फक्कड़  भी  कम  नहीं 

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