बशीर बद्र साहब का एक शेर सुनाया
ये नए मिजाज़ का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो....!!!
तुम्हारे शेर के जवाब में बद्र साहब से माफी चाहते हुए अर्ज करता हूँ
हम तो फिर भी गले लगायेंगे , हाथ न मिलने का कोई रंज नहीं
मिजाज़ शहर का बदल जायेगा ,हम जैसे फक्कड़ भी कम नहीं
ये नए मिजाज़ का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो....!!!
तुम्हारे शेर के जवाब में बद्र साहब से माफी चाहते हुए अर्ज करता हूँ
हम तो फिर भी गले लगायेंगे , हाथ न मिलने का कोई रंज नहीं
मिजाज़ शहर का बदल जायेगा ,हम जैसे फक्कड़ भी कम नहीं
No comments:
Post a Comment