Sunday, 11 August 2013

ग़दर क्यों मचाई तुमने
हमारे देर से घर आने पे ?
हम कभी नहीं करते मौज
काम के बहाने से …

मुद्दे और भी है,
जो वख्त लेते है
जरा यकीं तो करो
जो हम कहते है

शक करना तो तुम्हारी
फितरत में शुमार है
पर इस अंधी दौड़ की
हम पर बेतहाशा मार है

दौड़ते रहते दिन-रात
एक बेहतर कल के लिए
अपना सुकूं खो दियें  है
चंद सिक्को के लिए …







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