क्यों मचाते हो चरस ?
काहे बो रहे धान ?
क्यों करते हो लकड़ी ?
काहे बाँटने लगते
हर बात पे अपना ज्ञान ?
हम नहीं इतने भी नादान
आगे बढ़ो और अब
हम पे कृपा करो श्रीमान …
काहे बो रहे धान ?
क्यों करते हो लकड़ी ?
काहे बाँटने लगते
हर बात पे अपना ज्ञान ?
हम नहीं इतने भी नादान
आगे बढ़ो और अब
हम पे कृपा करो श्रीमान …
No comments:
Post a Comment