हमारे इस दिमाग में
तरह-तरह के
ख्यालो का डेरा है
अपनी पेट भरने की
चिंता सबसे पहले
देश पीछे कहीं
छूटा अकेला है
मरता है तो मरे
सरहद पे सैनिक
उसकी सुध कौन लेता है ???
स्वार्थ से
लहू श्वेत हो गया हमारा
जमा रहता
अब धमनियों में कहाँ बहता है ??
बेफ़जूल है
अब वतन परस्ती की बाते
इनसे हांसिल क्या होता है ???
ढूंढे से नहीं मिलता
नई नस्ल को
सच्चा रहनुमा कोई
अपना मुल्क अब
कितनी किल्लत में जीता है
तरह-तरह के
ख्यालो का डेरा है
अपनी पेट भरने की
चिंता सबसे पहले
देश पीछे कहीं
छूटा अकेला है
मरता है तो मरे
सरहद पे सैनिक
उसकी सुध कौन लेता है ???
स्वार्थ से
लहू श्वेत हो गया हमारा
जमा रहता
अब धमनियों में कहाँ बहता है ??
बेफ़जूल है
अब वतन परस्ती की बाते
इनसे हांसिल क्या होता है ???
ढूंढे से नहीं मिलता
नई नस्ल को
सच्चा रहनुमा कोई
अपना मुल्क अब
कितनी किल्लत में जीता है
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