Wednesday, 21 August 2013

बांध सकता कौन
तरंगिणी के उन्मुक्त प्रवाह को 
कौन ले  सकता 
गहरे जलधि की थाह को 

गगन के विस्तार को 
कौन जान पाया 
सम्पूर्ण धरा को 
कहाँ कोई  माप पाया

बरसते रवि अनल से
क्या कोई  बच पाता  है ?
अनिल के वेग समक्ष
कब कौन ठहर पाता है ?


अविष्कारों ,खोजो के बल पे
मनुज कितना इतराता
अपनी शक्ति का दंभ भरता
इसका विवेक मर जाता

संसाधनों का असीमित दोहन कर
वो सोचता है 
दक्ष है, सर्वेश्रेष्ठ है वो 
ये सब उसके लिये  ही बना है 

सहनशील प्रकृति कुछ समय 
उसकी यह  धृष्टता सहती 
और अति होने पर आपदा ला 
दुगुना वसूल कर लेती ....
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तरंगिणी =River,जलधि =Sea, रवि =Sun, अनल=Fire,अनिल=wind







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