बांध सकता कौन
तरंगिणी के उन्मुक्त प्रवाह को
कौन ले सकता
गहरे जलधि की थाह को
गगन के विस्तार को
कौन जान पाया
सम्पूर्ण धरा को
कहाँ कोई माप पाया
बरसते रवि अनल से
क्या कोई बच पाता है ?
अनिल के वेग समक्ष
कब कौन ठहर पाता है ?
अविष्कारों ,खोजो के बल पे
मनुज कितना इतराता
अपनी शक्ति का दंभ भरता
इसका विवेक मर जाता
संसाधनों का असीमित दोहन कर
बरसते रवि अनल से
क्या कोई बच पाता है ?
अनिल के वेग समक्ष
कब कौन ठहर पाता है ?
अविष्कारों ,खोजो के बल पे
मनुज कितना इतराता
अपनी शक्ति का दंभ भरता
इसका विवेक मर जाता
संसाधनों का असीमित दोहन कर
वो सोचता है
दक्ष है, सर्वेश्रेष्ठ है वो
ये सब उसके लिये ही बना है
सहनशील प्रकृति कुछ समय
उसकी यह धृष्टता सहती
और अति होने पर आपदा ला
दुगुना वसूल कर लेती ....
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तरंगिणी =River,जलधि =Sea, रवि =Sun, अनल=Fire,अनिल=wind
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तरंगिणी =River,जलधि =Sea, रवि =Sun, अनल=Fire,अनिल=wind
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