खामोश रहने और सहने की
सजा क्या खूब पाई है
कहने को ही लोकतंत्र है
घोटाले है ,महंगाई है
गैरो की बात छोड़ो
अपनों ने अपनी बस्ती जलाई है
बगैरतो के हाथो
मुल्क की बागडोर सौंप
खुद ही हमने
अपनी लुटिया डुबाई है …
सजा क्या खूब पाई है
कहने को ही लोकतंत्र है
घोटाले है ,महंगाई है
गैरो की बात छोड़ो
अपनों ने अपनी बस्ती जलाई है
बगैरतो के हाथो
मुल्क की बागडोर सौंप
खुद ही हमने
अपनी लुटिया डुबाई है …
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