Saturday, 24 August 2013

खामोश रहने और सहने की
सजा क्या खूब पाई है
कहने को ही लोकतंत्र है
घोटाले  है ,महंगाई है

गैरो की बात छोड़ो
अपनों ने अपनी बस्ती जलाई है

बगैरतो के हाथो
मुल्क  की बागडोर सौंप 
खुद ही हमने
अपनी लुटिया डुबाई  है …







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