Saturday, 31 August 2013

जिस की लाठी उस की भैंस
तो कहानी कुछ यों है कि एक ब्राह्मण को कहीं से यजमानी में एक भैंस मिली। उसे लेकर वह घर की ओर रवाना हुआ। सुनसान रास्ते में वह पैदल ही चला जा रहा था। बीच रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसके हाथ में मोटा डण्डा था और शरीर से भी वो अच्छा तगड़ा था। उसने ब्राह्मण को देखते ही कहा – “क्यों ब्राह्मण देवताखूब दक्षिणा मिली लगती हैपर यह भैंस तो मेरे साथ जाएगी।
ब्राह्मण ने झट कहा- क्यों भाई?”
चोर बोला- क्यों क्याजो कह दिया सो करो। भैंस छोड़ कर चुपचाप यहाँ से चलते बनोवरना लाठी देखी हैतुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े- टुकड़े कर दूँगा।
अब तो ब्राह्मण का गला सूख गया। हालाँकि शारीरिक बल में वह चोर से कम नहीं था। पर खाली हाथ वह करे भी तो क्या करेविपरीत समय में बुद्धिबल काम आया। ब्राह्मण बोला- ठीक है भाईभैंस भले ही ले लोपर ब्राह्मण की चीज यों छीन लेने से तुम्हें पाप लगेगा। बदले में कुछ देकर भैंस लेते तो पाप से बच जाते।
चोर बोला- यहाँ मेरे पास देने को धरा क्या है?” ब्राह्मण ने झट कहा- और कुछ न सहीलाठी देकर भैंस का बदला कर लो।
चोर ने खुश हो कर लाठी ब्राह्मण को पकडा दी और भैंस पर दोंनो हाथ रख कर खड़ा हो गया। तभी ब्राह्मण कड़क कर बोला- चल हट भैंस के पास सेनहीं तो अभी खोपड़ी दो होती है।
चोर ने पूछा-“ क्यों?”
ब्राह्मण बोला-“ क्यों क्या जिस की लाठी उस की भैंस।
चोर को अपनी बेवकूफी समझ आ गयी और उसने वहाँ से भागने में ही भलाई समझी। किसी ने सच ही कहा है कि जिसमें अक्ल हैउसमें ताकत है।

तो अब समझे कि यह कहावत यहीं से शुरू हुईजिस की लाठी  उस की भैंस।

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