Saturday, 24 August 2013

इश्क़ में राय बुज़ुर्गों से नहीं ली जाती...मुनव्वर राना

इश्क़ में राय बुज़ुर्गों से नहीं ली जाती


आग बुझते हुए चूल्हों से नहीं ली जाती

इतना मोहताज न कर चश्म-ए-बसीरत मुझको


रोज़ इम्दाद चराग़ों से नहीं ली जाती

ज़िन्दगी तेरी मुहब्बत में ये रुसवाई हुई


साँस तक तेरे मरीज़ों से नहीं ली जाती

गुफ़्तगू होती है तज़ईन-ए-चमन की जब भी


राय सूखे हुए पेड़ों से नहीं ली जाती

मकतब-ए-इश्क़ ही इक ऐसा इदारा है जहाँ


फ़ीस तालीम की बच्चों से नहीं ली जाती....मुनव्वर राना

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बसीरत=चातुर्य ,मकतब-ए-इश्क़ =प्रेम की पाठशाला , 
इदारा =सभा

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