Tuesday, 27 August 2013

जब भी खुद को
मुसीबत में पाता हूँ
अकेला पड़ जाता हूँ 
पिताजी का हाथ 
अपने कंधो पे पाता हूँ 

अपनी नादानियो पे 
कितना लजाता हूँ 
लड़कपन में मिली 
उनकी डांट की अहमियत 
अब जान पाता हूँ 

समझ में आता है हमारे 
बचपन में क्यों सख्त था
मिजाज उनका
जब रोजमर्रा की जिंदगी में 
अपने को बेहतर पाता हूँ 

खुदा सलामत रखे
साथ हमारा
अपने हर दिन  को
उनके तजुर्बो से
रोशन पाता हूँ …





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