Saturday, 17 August 2013

अपने मक़सद से अगर दूर निकल जाओगे

ख्वाब हो जाओगे अफ़सानो में ढल जाओगे


ख्वाबगाहों से निकलते हुए डरते क्यों हो

धूप इतनी तो नहीं है के पिघल जाओगे



अब तो चेहरे के खद ओ ख़ाल भी पहले से नहीं

किसको मालूम था तुम इतने बदल जाओगे



दे रहे हैं तुम्हे जो लोग रफाक़त का फरेब

इनकी तारीख पढ़ोगे तो दहल जाओगे



अपनी मिट्टी पे ही चलने का सलीका सीखो

संग ए मरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे



तेज़ क़दमों से चलो और तसादुम से बचो

भीड़ में सुस्त चलोगे तो कुचल जाओगे



हमसफ़र ढूँड़ो न गैरों का सहारा चाहो

ठोकरें खाओगे तो खुद ही संभल जाओगे



तुम हो एक ज़िंदा जावेद रिवायत की मिसाल

तुम कोई शाम का सूरज हो जो ढल जाओगे



सुबह सादिक़ मुझे मतलूब है किस से माँगूँ

तुम तो भोले हो चिरगों से बहल जाओगे

( इक़बाल अज़ीम )

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रफाकत = रफीक या साथी होने का भाव , मेल-जोल
तसादुम =परस्पर टकराना
जावेद =स्थायी
रिवायत =सुनी सुनाई बात
सादिक =सत्यनिष्ठ 

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